लोकल ट्रेन से सफ़र करते हैं पूर्व प्रधानमन्त्री कैमरून : भारत में छुटभैय्या नेता भी प्लेन में उड़ता है

आज कल नेताओं का बंगला विवाद जोरों पर है. ये इतने जोर-शोर से न चलता अगर केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार न होती. अब तक नियम क़ानून ताक पर रखकर देश के झंडाबरदार नेता मस्त रहते थे. राजनीति के मंच पर तो सब एक दूसरे के धुर-विरोधी दिखाई देते हैं, लेकिन मंच के पीछे सब एक साथ होते हैं. केंद्र और राज्यों में सरकार किसी भी दल हो लेकिन सब नेताओं के व्यक्तिगत काम हो जाते थे. अब ऐसा पिछले 4 वर्षों से नहीं हो पा रहा है, इसके पीछे का कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. कार्य शैली में अन्य दलों और नेताओं से हटकर होने के कारण, नेताओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. कई दशकों से बड़े-बड़े बंगलों में रह रहे दिग्गज नेताओं को शीर्ष न्यायालय के आदेश से जब इन्हें खाली करने का नोटिस पहुँचने लगा तो पूर्व मुख्यमंत्री होने के बाद भी इन नेताओं का मन इन बंगलों को खाली करने का नहीं है. इस नोटिस वाली खबर पढ़ते ही ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमन्त्री डेविड कैमरून की याद आ गयी. जब कैमरून का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल पूरा हो गया तो उन्हें अपने सरकारी निवास से पैक सामान को अपनी निजी कार में हुए फोटो देखी  थी. हाल ही में डेविड कैमरून की ट्रेन में आम लोगों की तरह सीट न होने के कारण खड़े हुए सफर करते फोटो देखी तो अपने देश के महान नेताओं की याद गयी जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ज़ारी नोटिस के बावजूद सरकारी बंगले खाली करने को तैयार नहीं हैं. अन्य देशों के नेताओं को देखते हुए जब अपने देश के नेताओं के बारे में सोचा तो कुछ अजीब सा लगा कि कितना फर्क है यहाँ और वहां के राज नेताओं में. शानदार लाइफ जीने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति जब सेवानिवृत होने के बाद व्हाइट हाउस छोड़ते होंगे तो उन्हें कितना बुरा लगता होगा. जैसा की हमारे देश के नेताओं को लगता है. लेकिन इसके उलट पढ़ने को मिला कि राष्ट्रपति पद से सेवा निवृत होने वाले ज़्यादातर राष्ट्रपति किताबें लिखने में व्यस्त हो जाते हैं. बुक राइटर बनने के पीछे इनका बीता कल होता होगा. जो इन्हें राष्ट्रपति पद पर रहते हुए प्राप्त तजुर्बों को शब्दों में पिरोने की प्रेरणा देता होगा. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की जब लोकल ट्रेन में सफ़र करती हुई पिक्चर देखी तो बंगले खाली न करने वाले इन झंडाबरदार नेता इनके सामने बौने से लगे. 70-75 साल पीछे जाये तो जिस ब्रिटेन के हम गुलाम रहे थे, जिन्होंने हिन्दुस्तान पर 200 वर्ष राज किया था. उनमें आज भी वही नैतिकता है, जो 2 सौ साल पहले थी. अगर ब्रिटिश हुकूमत 70 वर्ष पहले नैतिकता को ताख पर रख कर आज़ादी के लिए संघर्षरत सेनानियों के अगुआ नेता महात्मा गांधी को कोई भी बहाना बनाकर कह देते कि अभी नहीं बाद में देखेंगे. गोवा के साथ ही आज़ादी मिलती या आज भी गुलाम होते.अब इस बात का गुणा-भाग लगाया जाए तो नेताओं की नैतिकता के सवाल पर भारत के मुकाबले अन्य देश बहुत आगे हैं. शायद इस नैतिकता का कारण उनके अंदर की राष्ट्र भावना है. भारत में राष्ट्र भावना का अर्थ है  साम्प्रदायिक होना. बहुत ही चिंतनीय है कि जिस देश ने भारत को 200 साल गुलाम बनाये रखा, उसका प्रधानमंत्री सफ़र तय करने के लिये लोकल ट्रेन का इस्तेमाल करता है, तो वहीँ देश का छुटभैय्या छात्र नेता कन्हैया कुमार हवाई जहाज से सफर करके अपने आप को गौरवशाली महसूस करता है. यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिस देश के हम गुलाम रहे थे, उसका प्रधानमंत्री सेवानिवृत होकर लोकल ट्रेन में आम लोगों की तरह सफ़र करता है, तो वहीँ दूसरी तरफ जनता के टैक्स की सब्सिडी से मुफ्त की रोटी तोड़ने वाला पूर्व छात्रनेता कन्हैया कुमार किसी दूसरे राज्य में जाने के लिए प्लेन का इस्तेमाल करता है. 


Comments