कश्मीरी पत्थरबाजों के जिस्म पर नहीं पेट पर वार करने से ही घाटी में बहाल होगी शान्ति

कश्मीर में  भारतीय जवानों पर पत्थरबाज़ी करना कोई नयी बात नहीं है. 5 से 7 सौ रुपये प्रति दिन कमाने वाले पत्थरबाजों के लिए ये नफे का सौदा है.  21000 रुपये महीना कमाना मायने रखता है. पत्थरबाजों के लिए अक्सर ये कहा जाता है कि ये सब काम पत्थर बाज़ युवा पाकिस्तान के लिए करते हैं. इस बात में ज़्यादा दम नहीं दिखायी देता है. जम्मू-कश्मीर में अब पत्थरबाज़ी को वहां के कुछ प्रतिशत लोगों ने धंधे के तौर पर अपना लिया है. इसके पीछे  यहाँ के नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है. कश्मीर में कुछ दशक पहले तक दो राजनीतिक दल कांग्रेस और अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेस मुख्य रूप से हुआ करते थे. कुछ वर्षों बाद मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने पीडीपी का गठन किया और एक नया राजनीतिक दल अस्तित्व में आ गया. इस बार पीएम मोदी के मैजिक ने काम किया और इस तरह से चौथे दल के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने ज़ोरदार दस्तक दी. इस तरह से बीजेपी ने पीडीपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार का गठन किया.कहते हैं कि किसी एक ब्रांड को कई लोग बेचने लगें तो आपस में प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है. कुछ ऐसा ही हुआ. पहले सत्ता की विरासत को शेख अब्दुल्ला से पाकर फारुख अब्दुल्ला इसे आगे ले गए. फारूख अब्दुल्ला ने जब राष्ट्रीय राजनीति प्रवेश किया तो बेटे उमर अब्दुल्ला को कश्मीर का मुख्यमंत्री पद सहेजे रखने की ज़िम्मेदारी सौंप दी थी. मुफ़्ती मोहम्मद सईद के देहांत के बाद पीडीपी की कमान पुत्री महबूबा मुफ़्ती के हाथ में आ गयी. जोकि वर्तमान में मुख्यमंत्री हैं. नेहरू गाँधी परिवार की पार्टी कांग्रेस का नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी से पहले कश्मीर की राजनीति में ख़ासा दखल रहा है. अब इन चारों पार्टियों में इस बाद की प्रतिस्पर्धा है कि अगली बार सत्ता पर कौन काबिज होता है. लौटते है मुख्य बिंदु पर कि पत्थरबाजों का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल पाकिस्तान कर रहा है कि यहाँ की सत्ता में दखल रखने वाले राजनीतिक दल. अगर बहुत गहराई से यहाँ के पत्थरबाजी के हालातों को देखा जाए तो पाकिस्तानी आतंकवादियों को मोदी सरकार के केंद्र में आने से पहले बहुत आसानी से कश्मीर में एंट्री मिल जाती थी. जिस अलगाव के उद्देश्य से ये आते थे, उसे धमाकों से पूरा कर सीमा पर वापस चले जाते थे. 2014 बाद से पत्थरबाजी के मामलों ने तेज़ी पकड़  ली. इसके पीछे सिर्फ एक कारण रहा कि मोदी सरकार ने आते ही आतंकवादियों के ऊपर गोलाबारी का मुंह खोल दिया इसके चलते. पाकिस्तानी आतंकवादियों के पैर उखड़ने लगे. इसी का नतीजा है कि विधानसभा चुनाव में जम्मू में बीजेपी ने तो कश्मीर में पीडीपी जोरदार दस्तक दी. और दोनों ने मिलकर सरकार का गठन किया. राज्य और केंद्र की सत्ता में बीजेपी के होने के चलते पत्थरबाजों पर सख्ती की गयी और नोटबंदी ने अच्छे नतीजे दिए और पत्थरबाज़ी की घटनाएँ धीमे-धीमे कम होने लगीं. नोटबंदी ने अलगाववादियों की कमर तोड़ दी. इन्हें अंदर और बाहर से पत्थरबाजी के लिए मिलने वाला धन की आमद बंद हो गयी. आतंकवादियों को हमला कर भाग निकलने देने वाले पत्थरबाज़ों पर पैलेट गन आदि का इस्तेमाल और आतंकवादियों के सफाये की केंद्र सरकार ने पूरी छूट दे दी तो, इस बात से जलबलाये सत्ता से दूर नेताओं और अलगाववादियों ने के इशारे पर कहना गलत न होगा, इन पत्थरबाजों ने दूसरे राज्यों से फिर से कश्मीर घूमने आने वाले सैलानियों पर पथराव कर दिया. परिणामस्वरुप दक्षिण भारतीय 22 वर्षीय थिरुमनी अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया. थिरुमनी के मरने से सबसे ज्यादा परेशानी सत्तारूढ़ बीजेपी-पीडीपी गठबंधन को हुई. राजकोष के लिए आय का एकमात्र स्रोत पर्यटन के पत्थरबाज़ी के कारण बंद हो जाने का अंदेशा है. थिरुमनी के मारे जाने के चलते घडियाली आंसू बहाने के लिए उमर अब्दुल्ला समेत कई कथित लोग उतर आये. सभी महबूबा मुफ़्ती के साथ खड़े नज़र आ रहे है लेकिन साथ ही इस बात का कुतर्क दे रहे हैं कि जहाँ पर पत्थरबाज़ी होती है, वहां पर्यटकों को क्यों जाने की छूट सरकार ने दी. इस घटना के बाद भी कुछ वो लोग जो विश्व पटल पर कश्मीर को जलता हुआ दिखाना चाहते हैं, उन्हें भरपूर लाभ मिल गया. केंद्र और राज्य की गठबंधन सरकार सच में कश्मीर को पहले जैसी स्थिति में लाना चाहती है, उसे कुछ सख्त कदम उठाने पड़ेंगे.अगर इस बात का सर्वे किया जाए तो जो पढ़े-लिखे वर्ग के संभ्रांत कश्मीरी हैं, वो कश्मीर से पलायन करके दूसरे राज्यों में अपने रिश्तेदारों की मदद से शान्ति बहाली तक टिके हुए हैं. देखा जाए तो कश्मीर के उत्पाती पत्थरबाज़ अब खुलकर आतंकवादियों और अलगाववादियों की खुल के मदद कर रहे हैं. इसी के चलते जहाँ-तहां पत्थरबाजी करके स्थानीय लोगों को भी निशाना बनाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं. एक अंग्रेजी की मसल है कि Everything is fair in love and war (मोहब्बत और जंग में सब  जायज़ है) इसलिए अब इन आताताइयों बुरहान वानी बनने से रोकने के लिए इनकी रीढ़ तोड़ना ज़रूरी है. इसके लिए ज़रूरी है कि इन्हें 2 रुपये किलो गेहूं, मिट्टी का तेल 13.63 रुपये से 14.58 रुपये तक प्रति लीटर. दाल 20 रुपये प्रति किलो आदि सस्ता देने पर रोक लगाना ज़रूरी है. इन मूल्यों पर गहराई से नज़र डाली जाये तो चार सदस्यों का परिवार एक दिन की पत्थरबाजी के बाद महीने भर का राशन इक्ट्ठा कर लेता है. सेटिंग के चलते दूसरों को  मिलने वाले राशन को थोड़ा ज्यादा कीमत चुका कर ले सकता है. इस योजना पर रोक लगने से निर्दोषों को थोड़ी परेशानी उठानी पड़ सकती है. अगर देखा जाए तो 700 रुपये कमाने वाला पत्थरबाज़ एक दिन की पत्थरबाजी से जब महीने भर का राशन बटोर लेता है तो उसे कुछ और करने की ज़रुरत ही क्या है. सही मायने देखा जाए तो अपरोक्ष रूप से केंद्र और राज्य की सरकारें इस पत्थरबाज़ी को अपनी योजनाओं से बढ़ावा दे रही हैं. शायद यह बात केंद्र और राज्य की सरकारों को समझ में नहीं आ रही है. कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर. कुछ ऐसी ही स्थिति में पहुँच चुका है कश्मीर का पत्थर बाज़ ग्रुप. रोज कुआं खोद कर पानी पीना पड़े तभी तो उसकी कीमत पता चलती है. महीने के कुछ दिन पत्थरबाज़ी में महीने भर का राशन-पानी जुटा लेने वाले को सुधारा जा सकता है.  इस तरह से बिना किसी हिंसा के इन पत्थरबाजों से निपटा जा सकता है. इतिहास में एक मुग़ल शासक भी कुछ इसी तरह की बात पर अम्ल करता था. वो खुद भी जरी की कढ़ाई का काम करता था और लोगों को उतना ही धन काम के बड़े देता था जितने में लोग अपने परिवार के लिए दो वक़्त का खाना जुटा सकें. ताकि दूसरे दिन की रोटी जुटाने पर ही सोचता रहे. इसके पीछे शासक की थ्योरी ये थी कि इस तरह से किसी भी व्यक्ति के दिमाग में विद्रोह करने की बात नहीं पनपेगी. अगर दोनों सरकारें सुविधाएं देकर इनके दिमाग को खाली रखेंगी तो खुराफात तो आनी ही है. जब महात्मा गाँधी भूख हड़ताल करके अंग्रेजों को हिलाए रहते थे तो खुद भूख हड़ताल न करके के इन पत्थरबाजों से भूख हड़ताल करवाने में ही समझदारी है. पेट की आग बुरे से बुरे इंसान को सुधर देती है तो अच्छे इंसान बुरा भी बना देती है. अब इन पत्थरबाजों के जिस्म पर नहीं पेट वार किया जाना चाहिए, तभी घाटी में सब कुछ अच्छा हो पायेगा. वरना सरकारी राशन योजना के लाभ से एक बार की पत्थरबाज़ी से ये पत्थरबाज़ महीने भर का राशन जुटा कर इसका भरपूर लाभ उठाते रहेंगे.

                                                                                                                                                    

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