सोचिये 1 हज़ार साल आगे का रेल टिकट अगर मोदी सरकार के समय ज़ारी हो गया होता तो...
सहारनपुर की एक उपभोक्ता अदालत ने 5 वर्ष पहले रेलवे विभाग से हुई बड़ी चूक में एक यात्री को 1 हज़ार साल पहले का टिकट जारी कर दिया था पर जुर्माना लगाया है. वर्ष 2013 में सेवा निवृत प्रोफ़ेसर विष्णु कान्त शुक्ल हिमगिरी एक्सप्रेस से सहारनपुर से जौनपुर जा रहे थे. टिकट चेकिंग के दौरान टीटीई ने उनके टिकट पर 2013 की जगह 19 नवम्बर 3013 की तारीख पड़ी हुई है. इस पर टीटीई ने 8 सौ रुपये पेनाल्टी देने को कहा और बाद में मुरादाबाद स्टेशन पर उतार दिया. ये घटना नवम्बर 2013 की है. कहीं ये नवम्बर 2014 में घटित हुई होती तो आज कांग्रेस समेत सारे गैरभाजपाई दल मोदी सरकार के रेल विभाग पानी पी-पीकर कोस रहे होते. सभी की जुबान सिर्फ यही बात होती कि देश में बहुत अच्छा होने का दावा करने वाली मोदी सरकार में सब ढोल में पोल है. मोदी सरकार में सेवानिवृत प्रोफेसर को रेलवे की गलती का खामियाज़ा भुगतना पड़ा है. भुक्तभोगी की महत्वपूर्ण यात्रा पूरी नहीं हो सकी और उन्हें बीच में ही टीटीई ने उतार दिया. या फिर ये चिल्ला रहे होते कि केंद्र केंद्र की मोदी सरकार में रेल विभाग के सभी लोग निरंकुश हो गए हैं. कुछ नहीं तो बुजुर्ग प्रोफ़ेसर का ख्याल करना चाहिए था आदि बहुत कुछ चिल्ला रहे होते. कुछ ऐसे ही हमले मोदी सरकार पर हो रहे होते, सोने पे सुहागा तब हो जाता जब प्रोफेसर दलित और टीटीई सवर्ण होता. ये समाचार छपने के बाद न्यूज़ चैनलों में दलित पर हो रहे अत्याचार आदि पर डिवेट चल रही होती और मोदी सरकार के अच्छे दिनों पर तंज कसा जा रहा होता. डिवेट में बैठा गैरभाजपाई नेता ताना मार रहा होता कि अगर देश में किसी और की सरकार केंद्र में होती तो किसी बुजुर्ग दलित को इस तरह से कोई सवर्ण बेइज्जत करने की हिम्मत नहीं करता, यही है भाजपा का दलित विरोधी चेहरा. ऊपर वाला पीएम मोदी और उनकी सरकार पर मेहरबान था वरना प्रोफेसर शुक्ला अगर ये यात्रा नवम्बर 14 में कर रहे होते तो गाल बजाने वाले नेताओं के लिए अपनी नेतागीरी चमकाने का मौक़ा मिल गया होता और पत्रकारों को कई दिनों के लिए मोदी सरकार के अच्छे दिनों पर चटपटी खबरों के लिए कई दिनों तक का भरपूर मसाला मिल गया होता. आजकल विरोधी दल सब्जी फैंक और दूध बहाओ अभी यान चलाये हुए हैं. ऐसे प्रदर्शन भी इसी तरह के मोदी विरोध का ही हिस्सा है. कुल मिलाकर मुझे लगता है कि 2013 में रेलवे विभाग से हुई गलती मोदी सरकार आने के बाद हुई होती तो यह पक्का था कि विरोधी दल, सुरेश प्रभु को समय से पहले इस्तीफा दिलवा कर ही मानते. और अच्छे दिन कब आयेंगे मोदी जी के नारे गूँज रहे होते.




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