कर्नाटक के हालातों से लगता है,कांग्रेस को जोड़-तोड़ की सरकार बनाना 2019 में भारी पड़ेगा

कुछ हफ्ते पहले तक कर्नाटक राज्य में विधानसभा चुनावों की ज़बरदस्त हलचल रही क्षेत्रीय जेडीएस ने राष्ट्रीय दलों बीजेपी और कांग्रेस को अपने मंच से खूब खरी-खरी सुनाई थी. इसके बावजूद उसे विधानसभा में कुछ ज़्यादा सफलता नहीं मिली, कुल जन्मा 37 सीटों से संतोष करना पड़ा था. इस निराशा के समुंदर में डूबे हुए बाप-पूत देवेगौड़ा को आशा की किरन कहें या कांग्रेसी लॉलीपॉप जो ये हमेशा से हर दुखियारी पार्टी को थमाते रहते हैं ने आनन-फानन में 78 डंडों वाली कुर्सी पर बैठा दिया. देवेगौड़ा पुत्र को लगा कि उसके भाग्य की रेखा कांग्रेस ही लम्बी कर सकती है. सोचे मुताबिक़ कांग्रेस ने भाग्य से दगे कारतूस कुमारस्वामी की ढहती छत के नीचे 78 डंडों का सहारा दे दिया. कर्नाटक की जनता ने तो कुमारस्वामी को उम्मीद से आधा भी नहीं दिया,लेकिन कांग्रेस ने उम्मीद से अधिक दे डाला. इस अप्रत्याशित मिले गिफ्ट को लपकने के लिए कुमारस्वामी ने दाम्पत्य जीवन से पूर्व पत्नी को दिए जाने वाले वचनों की तरह ही कांग्रेस की साडी शर्तों को मन लिया. कुमारस्वामी लग रहा था कि उनका मुख्यमंत्री के रूप में हनीमून शहद की मिठास लिए होगा,लेकिन इसके उलट जेडीएस के ही लोग इस हनीमून पीरियड के दुश्मन बनने लगे. सुना है कोई जीटी देवेगौड़ा हैं जिन्होंने कांग्रेस के के सिद्धारमैया को पूर्व मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाते हुए उन्हें एक सीट पर हरा दिया था. अगर दूसरी पर न जीते होते तो सीधा रमैया उलटा रमैया बन जाते. अब कर्नाटक के इस बेमेल परिणय सूत्र की गाँठ बाँधने में शामिल हुए लोगों ने ही इसे खोलने का प्रयास शुरू कर दिया है. महत्वाकांक्षा सभी में होती हैं किसी कम तो किसी में ज़्यादा. अगर मुफ्त का मॉल हर कोई ज़्यादा से ज़्यादा हाथ साफ करने के चक्कर में रहता है. कुछ ऐसा ही अब कर्नाटक राज्य में शुरू हो गया है. जिस तरह से कांग्रेस ने 37 सीटधारी कुमारस्वामी को सीएम बनाया है, इसी का नतीजा है कि जितने भी वर्तमान में विधायक चुने गए हैं में कुछ ज़्यादा बड़ा पा लेने की होड़ मची हुईं है. कुल 116 सीटों के साथ कांग्रेस और जेडीएस ने दो अन्य के साथ बहुमत हासिल किया है. जिसे तिकड़मबाज़ी कहा जाए तो गलत न होगा. अपने विधायकों को न टूटने देने के लिए जिस तरह से कांग्रेस और जेडीएस ने घेराबंदी की थी इसके चलते इन सभी विधायकों को अपना मोल समझ में आ चुका है. यही मोल अब जेडीएस कांग्रेस के कच्चे गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है. सभी 116 को मंत्री नहीं बनाया जा सकता है. जिसे नहीं बनाया गया वो धार लगाए बैठा रहेगा. इनमें से ज़्यादातर विधायक इसी चक्कर में होंगे कि मंत्री बनाते ही माल कमाना है तो अगर मंत्री नहीं बना तो वो धीमे-धीमे 810 विधायकों को इकठ्ठा करके बाहर निकल लिया तो कर्नाटक सरकार तो चली जायेगी. अगर ऐसी स्थिति आती है तो मज़बूरी में विधानसभा भंग करके दुबारा चुनाव में जाना पड़ेगा. अगेर ऐसा हुआ तो कर्नाटक की जनता के सामने जेडीएस और कांग्रेस किस मुंह से वोट माँगने जायेंगे. इन दोनों दलों को जनता के इस सवाल का जवाब देना पड़ेगा कि जब पांच साल सरकार चलाने का बूता नहीं था तो दिए गए जनादेश को मानने से इनकार क्यों किया. कुल मिला कर अगर सत्ता पक्ष के कुछ विधायकों ने खुन्नस में निकल भागने का निर्णय ले लिया तो कर्नाटक की सरकार को गिरने से कोई भी नहीं बचा पायेगा. अभी तक नौंवीं पास विधायक शिक्षामंत्री बनाये जाने से भी नाराज़ दिख रहा है. सोचने वाली बात है कि जिन्हें उचित मंत्री पद नहीं मिला तो वो बगावत करने से गुरेज नहीं करेगा. अगर ऐसा ठीक लोकसभा चुनाव के कुछ पहले हो गया तो कांग्रेस और एडीएस को कर्नाटक की लोकसभा सीटों पर बुरी हार का सामना करना पड़ सकता ही. इस स्थिति को देखते हुए लग रहा है कि कांग्रेस ने बीजेपी को रोकने के लिए जिस तरह के हथकंडे अपनये थे वो उसको भविष्य में भरी पड़ने जा रहे हैं.

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