सरकार स्वस्थ्य क़ानून व्यवस्था चाहती है तो खाकी वर्दी की समस्याओं को संज्ञान लेना अतिआवश्यक है

किसी भी तरह की कोई घटना या दुर्घटना हो आती है तो सबसे पहले आम जन आनन-फानन में 100 नम्बर डायल कर देता है. घटनास्थल खाकी की रेंज से पास है तो ये मुश्तैदी से पहुँच कर अपनी खाकी के कर्तव्यों का पालन करने में जुट जाते है. घटनास्थल से तमाशबीनों की भीड़ छंट जाने के बाद भी ये अपने कम में लगे रहते है. जब कभी खाकी को पहुँचने में देर हो जाती है तो घटनास्थल पर मज़मा लगाए, लोग अपना शत-प्रतिशत देते हुए इनकी आलोचनाओं में बिजी हो जाते हैं. हर किसी के मुंह में इनके लिए नए-नए जुमले होते हैं. कोई बोल रहा होता है कि अरे यार रात की उतरी नहीं होगी. तो कोई कहीं होंगे वसूली अभियान में. तो कोई रात भर आने जाने वालों की जेब खाली करते हैं तो सो रहे होंगे. आदि-आदि कुछ इसी तरह की बातें आम जनता के मुंह से निकलने वाले शब्द बन चुके हैं. अक्सर कोई वीवीआइपी और वीआइपी निकलता है तो सबसे आगे इन्हें ही रहना होता है. रुके ट्रैफिक में सब एक राय होते हैं कि ये खाकी वाले जान-बूझ कर 1 घंटा पहले ही ट्रैफिक  रोक आर अपनी अहमियत दिखाते हैं. कुछ इसी तरह की बाटन के अलावा कभी भी इस खाकी के लिए गुड वर्क की बातें नहीं सुनी हैं. कितनी ही बड़ी घरेलू या विभागीय परेशानी हो इनको खुद ही निपटना होता है. अगर कभी घटना में कोई रसूखदार नामजद हो गया और उसे थाने या चौकी ले आये तो वो दबंग ऐसे वर्दी उतारने की बात करता है मनो वो अपने घर में कपड़े बदल रहा है. इन्हें कभी भी किसी की संवेदनाएं इसलिए नहीं मिल पाती हैं क्योंकि ये खाकी वर्दी वाले हैं. सरकार और विभाग के साथ ही ये समाज में भी तिरस्कृत हो गए हैं. अक्सर स्कूटर से कहीं जाते हुए इन्हें चिलचिलाती धूप में पुलिस बूथ में 40 डिग्री टेम्प्रेचर में बैठे देखा है. इलेक्ट्रिक कनेशन है तो पंखा चल रहा है, वरना कोई बात नहीं है. इस बीच कोई दुर्घटना या घटना हो जाये तो तमाशबीन तुरंत कहने लगते है, मौज से बॉक्स में हवा खा रहे हैं, जनता की सुरक्षा भाड़ में जाए जैसे जुमले सुनने को मिलते रहते हैं. ये सब लिखने के लिए आज न्यूज़ पेपर में छपी पुलिसकर्मी स्वर्गीय दरोगा राम रतन की आत्महत्या प्रेरित किया. खबर के मुताबिक़ 56 वर्षीय दरोगा स्वर्गीय राम रतन विभाग और घर की परेशानियों के कारण तनाव में रहते थे, जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या कर ली.  पूरी न्यूज़ विभाग और घर की परेशानी को ही बतला रही है. जांच के बाद भी कुछ ऐसा ही निकल कर आएगा और सब मामला खाकी के विभाग में एक परेशानहाल खाकी की मौत फ़ाइल में तब्दील हो जायेगी. अगर देखा आये तो स्वर्गीय राम रतन की आत्महत्या हमारे सड़े गले सिस्टम का मखौल उडाती है. राम रतन की आत्महत्या को सामान्य लेना कि परेशानियों से तंग आ कर ली तो ऐसा सोचना कितना उचित होगा. एक खाकी वर्दीधारी जोकि क़ानून का पालन कराने के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़ा होकर आम और ख़ास को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरुक रखने की बात करता है तो उसकी असमय मृत्यु को पुलिस प्रशासन और सरकार को संज्ञान लेकर इन खाकी की समस्याओं का समाधान करना चाहिए. अगर लोगों के मुंह से सुनी हुई बातों से खाकी के लिए पूर्वाग्रह नहीं बनाना चाहिए. खाकी के अंदर कैद व्यक्ति होता तो आम इंसान ही है लेकिन जब वो इसको धारण कर लेता है तो वो इस खाकी के कर्तव्यों से बंध जाता है. इसके साथ ही वो आम लोगों की तरह व्यवहार नहीं कर सकता है. आधिकार और कर्तव्यों को तो अच्छे से सबने पढ़ा और जाना है, इसके तहत खाकी अपने कर्तव्य तो निभाती है लेकिन अपने खाकी के अधिकारों को नहीं ले पाती है. खाकी न्याय के मंदिर तक किसी पीड़ित को पहुंचा तो सकती है, लेकिन लेकिन अपने अधिकारों के लिए न्याय का दरवाज़ा इसलिए नहीं खटखटा सकती है क्योंकि उसका ये करना निरंकुशता में शामिल हो जाता है. अगर ऐसा पुलिसकर्मी करते हैं तो ये विद्रोह मान लिया जाता है. सरकार को अगर स्वच्छ और स्वस्थ पुलिस प्रशासन चाहिए तो खाकी की इस तनाव वाली बीमारी को दूर करना चाहिए. तभी स्वस्थ और स्वच्छ समाज बनने की कल्पना करनी चाहिए. सभी प्रदशों की सरकारों को इंसानियत के नाते चाहिए कि  खाकी की तरह भी देखें और उनकी समस्याओं का समाधान करें, ताकि खाकी खुद ही फैसला करने वाली निरंकुश संस्था न बने इसी में सब सामाजिक प्राणियों की भलाई है. प्रदेश सरकार को चाहिए कि संवेदनशीलता के साथ खाकी पर उसी तरह से सोचे कि जिस तरह से जनता ने उन्हें आम से खास बनाया है. कुछ इसी तरह से खाकी वर्दी के अन्दर भी एक आम इंसान है जिसकी अन्य आम लोगों की तरह ही अपनी कुछ ज़रूरतें और परेशानियां होती हैं. 

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