देश में बढ़ते बलात्कार: न आधुनिकायें और न ही शोहदे, दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है
फ़ैशन शब्द सुनते ही मस्तिष्क में आज की आधुनिकाओं की छवि उभर जाती है. हमेशा ही ऐसा होता है, क्योंकि महिलाओं में इतना फैशन परस्ती हो चुकी है. कभी भी,कहीं भी अगर फैशन की बात चली तो, मेकअप से सराबोर एक खूबसूरत चेहरा और फटे-चीथड़े टाइप के कपड़ों में लिपटा हुआ जिस्म कौंध जाता है. राह चलते आधुनिकाओं के ऐसे लहराते जिस्म दिखना आम बात हो गयी है. कभी कोई आधुनिका जाँघों और घुटनों से फटी जींस और लोकट टॉप में दिख जाती है तो भोले-भाले सामजिक प्राणी परिवार की महिला सदस्य के साथ होने पर लज्जावश इस मॉड की तरफ से मुंह फेर लेने में ही भलाई समझते हैं. आज कल फैशन रफ़्तार के साथ बदलता जा रहा है. नित नए डिजाइन के वस्त्रों में लिपटी हर आयु वर्ग की युवतियां देखने को मिल जाती हैं. कुछ दशक पहले तक स्टाइलिश वस्त्रों का चलन फिल्मों की हीरोइनों की दें था. उस समय शलवार-कुर्ते का चलन था, शायद इसीलिए इसमें टाईटऔर ढ़ीला-ढाला करके फेर-बदल होता रहता था.साड़ी भी उस समय फैशन में सुमार रहता था. समय अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ता गया, इसी के साथ छाती से आंचल और दुपट्टा भी गायब होता गया. इसी के साथ पुरुषों के कपड़ों को इन आधुनिकाओं ने अपना लिया. इनमें जींस-शर्ट और पैंट को पहनने की होड़ में दुपट्टा पूरी तरह से गायब हो गया. देश की आधुनिकाओं को फिल्मों और फैशन डिजाइनरों के अजीबो-गरीब डिजाइन किये कपड़ों ने इनको पाश्च्यात सभ्यता की तरफ पूरी तरह से धकेल दिया. अब वस्त्र स्टाइलिश कम जिस्म उधाडू ज़्यादा दिखाई देते हैं. अगर इस फैशन परस्ती के आईने में देखें तो ये सब बेचारे ड्रेन टाइप पैंट से बेलबाटम और फिर पतली मोहरी में लौट आया. पाजामा, चूड़ीदार, पजामा,सूट सफारी सूट, शर्ट, टीशर्ट पर आकर अटकता रहा. ये आधूनिकाएं सिर्फ एक मामले में लड़कों से पिछड़ गयी वो है अजीबो-गरीब हेयर स्टाइल. जिन्हें लड़ों ने अपनाया लेकिन लड़कियों ने परहेज रखा ऐसा क्यों कर रहा ये कोई भी आधुनिका ही बता सकती हैं. अगर 40 दशक के फैशन पेर नजर डाली जाए तो कपड़ों ने ही शोहदों को आमन्त्रण जिसका परिणाम देश में बलात्कारों की आई हुई बाढ़ से ही समझा जा सकता है. जब भी इन जिस्म उधाडू वाश्त्रों में लिपटी आधुनिकाओं के फैशन पर हमला होता है तो ये तुरंत ही ये कहते विरोध करने लगती हैं कि हमें क्या पहनना है ये हम तय करेंगे. मर्द का सहारा तब चाहिए होता है जो कोई रेप की घटना देश को हिला न दे. फिर रोज नई- नई नेता टाइप की हीरोइनें इन बदन उधाडू कपड़े पहनने वालियों को डिफेन्स करने खड़ी हो जाती हैं. आज की आधुनिक नारियां ये कभी नहीं सोचती हैं कि जो फ़िल्मी हीरोइनें इनके अश्लील कपड़ों के डिफेन्स में उतरती हैं, वही आज समाज में फैली गंदगी के लिए ज़िम्मेदार है. ये हीरोइनें इन्हीं फटे कपड़ों को पहन कर लाखों करोड़ों कमाती हैं तो इन्हें अपने पास से इन कपड़ों के लिए पैसा खर्च करना पढ़ता है. आज ऐसे वस्त्र ही फिल्मों के हिट होने की गारंटी बनते जा रहे हैं. पुरुष प्रधान पिक्चर में नायिका की कोई एहमियत नहीं होती है, लेकिन उसके कम कपड़ों से झांकते जिस्म को देखने के लिए सडक छाप लोगों को टिकट खिड़की तक ले आती है. आज देश जिस तरह से अपराधों की बाढ़ सी आई हुई है इसे इन आधुनिकाओं के फैशन को देश दिया जाए तो कोई गुरेज़ नहीं है. अक्सर लोगों का कुतर्क होता है कि 5 साल और 7 साल की मासूम बच्चियों ने कौन से अश्लील वस्त्र पहन रखे थे जिसने उससे साथ बलात्कार करने के लिए प्रेरित किया. इसके बाद तुरंत आरोपों की झड़ी लग जाती है. इनके अश्लील उत्तेजित करने वाले वस्त्रों के डिफेन्स में कुत्सित विचारों वाले लोग भी कूद कर आ जाते हैं. उसके बाद कुछ दिन तो उठा-पटक चलती रहती है, इसके बाद सब कुछ शांत हो जाता है. ये शान्ति कुछ वैसी ही होती जैसी तूफ़ान के आने के पहले होती है. इसीलिए आज की आधुनिकाएं कहती हैं कि हम नहीं सुधरेंगे तो शोहदे भी पीछे नहीं हटने को तैयार नहीं होते हैं.






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