मन-भेद की राजनीति से परे ओवैसी ने कश्मीर पर यूएन की मानवाधिकार हनन की रिपोर्ट को किया ख़ारिज
अक्सर न्यूज़ चैनल्स पर असाउद्दीन ओवैसी केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी+(एनडीए) सरकार का विरोध ही करते दिखे हैं. केंद्र की मोदी सरकार का विरोध करने वाले ओवैसी इकलौते नेता नहीं हैं और बहुत सारे विरोधी दल के नेताओं के भी ऐसे ही सुर सुनाई देते हैं. कुछ मामलों में एआईएमआईएम के सुप्रीमो असाउद्दीन ओवैसी थोड़ा अन्य दलों के बनिस्बत अलग हैं. अक्सर केंद्र सरकार को निशाने पर लेने वाले एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने शनिवार को एक मसले को लेकर केंद्र की मोदी सरकार का समर्थन किया. कश्मीर पर मानवाधिकार हनन को लेकर पेश की गई संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट पर केंद्र सरकार के रूख का समर्थन करते हुए ओवैसी ने कहा कि हम इस रिपोर्ट को खारिज करते हैं, यह हमारे देश का अंदरूनी मसला है.ओवैसी के इस बयान से साफ़ लगता है कि वो मतभेद की राजनीति पर अधिक भरोसा करते हैं. अन्य दलों की तरह वो केंद्र के हर कार्य पर विरोधी राग नहीं अलापते दिखाई देते हैं. इनका ये बयान स्वस्थ राजनीति की तरफ इशारा करता जान पड़ता है. जितने भी क्षेत्रीय दल मिलकर कांग्रेस के साथ 2019 में महागठबंधन बनाकर केंद्र की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं, उन्हें असाउद्दीन ओवैसी के बयान से सबक लेना चाहिए. हैदराबाद से सासंद ओवैसी ने यहां की मक्का मस्जिद में नमाजियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘यह हमारे देश की संप्रभुता का मुद्दा है. मैं अंतिम सांस तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करूंगा लेकिन जब देश की बात आएगी तो हम सरकार का समर्थन करेंगे चाहे वह किसी भी पार्टी की सरकार हो.’ उन्होंने आगे कहा कि संयुक्त राष्ट्र, देश के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं दे सकता. भारत ने कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को लेकर कड़ा ऐतराज जताते हुए इसे'तथ्यरहित,मनगढ़ंत और निराधार' करार दिया है.दरअसल संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर में मानव अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए इसकी जांच कराए जाने पर जोर दिया है, जिस पर भारत की यह प्रतिक्रिया आई है. रिपोर्ट को गुमराह करने वाला और अस्वीकार्य करार देते हुए भारत ने कहा कि इसमें सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद की पूरी तरह से अनदेखी की गई है, जबकि आतंकवाद मानवाधिकारों का सबसे बड़ा दुश्मन है. भारत ने यूएन के रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए इसे 'गलत, पूर्वाग्रह से ग्रस्त और प्रेरित' बताया. विदेश मंत्रालय की ओर से गुरुवार को जारी बयान में रिपोर्ट के इरादों को लेकर सवाल उठाया गया और कहा गया कि इसमें बहुत से ऐसे तथ्य हैं, जो सत्यापित नहीं हैं. बयान के अनुसार, 'पूर्वाग्रह से ग्रस्त यह रिपोर्ट भारत की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती है.' यूएन की इस रिपोर्ट के विरोध में केंद्र सरकार के साथ खड़े दिखे एआईएमआईएम मुखिया के बयान अन्य भाजपा विरोधियों को स्वच्छ राजनीति का सन्देश दिया है. उनका बयान पहले देश की तर्ज़ पर है, जो सराहनीय है. अक्सर सोशल मीडिया पर पढ़ने को मिलता है कि ओवैसी बंधुओं ने देश से 15 मिनट के लिए पुलिस हटाने जैसे बयान दिए हैं. इस तरह के बयानों से साफ़ है कि उनकी मंशा अपने मुस्लिम वोटों को बटोरे रखनी की भी हो सकती है. शायद लोगों को याद न हो. ऐसे हिन्दू विरोधी बयान देने वाले ओवैसी भाइयों ने केदारनाथ ने कुदरत की मार झेली थी, उस समय दोनों भाइयों ने कुछ करोड़ राशि मदद में देने की बात कही थी,जो उन्हें मन-भेद की राजनीति कर वाले नेताओं से अलग खड़ा करती है. अक्सर मोदी विरोध में सभी दल मन-भेद की राजनीति करते करते ये भूल जाते हैं कि जब राष्ट्रीयता की बात हो तो सरकार के साथ खड़ा हो जाना चाहिए जैसा कि असाउद्दीन ओवैसी करते है. राजनीति में मत-भेद रखने चाहिए, लेकिन मन-भेद की राजनीति से सभी दलों को परहेज करना चाहिए. सत्ता में आने के लिए बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जो आने वाले समय में देश के लिए घातक साबित होने वाले हैं.जैसा की अमेरिका की नासा ने रिपोर्ट दी है कि आने वाले कुछ सालों में भारत में बारिश का ख़त्म हो जायेगा. इन मुद्दों को न छूना ही मोदी विरोधियों को बेनकाब करता है. जल संकट देश के लिए एक विकराल समस्या बनने जा रहा है, लेकिन देश के सभी छोटे-बड़े दल अपनी महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार करने से परहेज करते रहते हैं. अगर देश में मनभेद की राजनीति ऐसे ही चलती रही तो जो लोग पट्रोल के लिए नौटंकी करते फिरते हैं, इन्हीं लोगों के कारण देख के आम लोगों को पट्रोल के दाम में पानी पीना पडेगा. अभी भी देश के झंडाबरदारों के पास समय है कि मन-भेद की राजनीति छोड़कर मत-भेद की राजनीति करें तो ही बेहतर है. ताकि देश निर्बाध गति से आगे बढ़ता रहे.



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