वोट के लिए मुगल अच्छे, लेकिन मोदी विरोध में सुरजेवाला ने औरंगजेब को क्रूर शासक कह दिया

लोकसभा चुनाव 2019 के तहत, आज कल सभी छोटी बड़ी पार्टी के नेताओं के सुरताल बनते बिगड़ते नज़र आ रहे हैं. कुछ साल पहले किसी पार्टी के नेता ने जो बयान दिया है, लेकिन आज उस बयान के विपरीत बोलते नज़र आ रहे हैं. इनके जब बयान ही कुछ महीनों या  सालों में बदल जा रहे हैं तो इनकी विचारधारा स्थिर कैसे रह सकती है. बीजेपी ने कांग्रेस की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गाँधी के शासनकाल में 42 साल पहले लगाये गए आपातकाल को काले दिन दिन के रूप में मनाने के कारण कांग्रेस के नेताओं ने अपना आपा खो दिया. इसके साथ ही कुछ क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने भी गठबंधन की दुहाई के नाम पर साथ देने का प्रयास किया तो उनकी पार्टी के नेता जो आपातकाल में उस समय कांग्रेस विरोधी दलों में हुआ करते थे, उन नेताओं की स्थिति देखने लायक थी. दोपहर में जी न्यूज़ पर ताल ठोंक के कार्यक्रम में रुबिका लियाकत के सामने बेबस नज़र आ रहे थे जिनके नेता 2019 गठ बंधन करके केंद्र की सत्ता पर काबिज होने की जुगत में हैं. इस कार्यक्रम में जब समाजवादी पार्टी के नेता ने कांग्रेस का समर्थन करना चाहा तो उन्हें बीजेपी करे नेताओं ने यह कहते हुए घेरा कि आपकी पार्टी के मुलायम सिंह यादव भी आपातकाल में प्रताड़ित किये गए थे. तो आप कांग्रेस का समर्थक कैसे कर सकते हैं. इसके बाद इन नेता जी से आपातकाल जैसी घटना की निंदा करवा कर ही मान. कुछ ऐसा ही हाल सत्ता के लिए परेशान राजनीतिक दलों के नेताओं का हो गया है. बीजेपी के द्वारा आपातकाल को काले दिवस के रूप में मनाने की बात पर कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला ने प्रधानमंत्री की तुलना मुगल शासक औरंगजेब से करते हुए कहा कि वो इस शासक की तरह क्रूर हैं. प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के चक्कर में अक्सर नेता अपना संतुलन खो देते हैं कुछ ऐसा ही सुरजेवाला के साथ हो गया. बीजेपी इस बयान पर पलटवार कर सकती थी कि कांग्रेस की कोई भी विचारधारा नहीं है. जो कांग्रेस विदेशी आक्रमणकारियों के मुगल शासकों को सम्मान देते हुए मुस्लिमों को देश की आज़ादी में भूमिका मानती है उन्हीं मुगलों के बादशाह को क्रूर साबित कर के क्या सन्देश देना चाहती है. अगर औरंगजेब एक क्रूर शासक था तो इन मुगलों को महिमा मंडित करके क्या मुस्लिम वोट पाना ही मुख्य उद्देश्य है. अगर कांग्रेसी यह कहते हैं कि औरंगजेब ही मुगलों में क्रूर शासक था और बाक़ी के शासक धर्मनिरपेक्ष थे तो इसमें भी कांग्रेसी नेता फंस जायेंगे. अगर आज़ादी के लिए लड़ने वाले कांग्रेसी ही असली थे तो आज के कांग्रेसियों को असली कैसे कहा जा सकता है. वैसे भी कांग्रेस कभी भी किसी मुद्दे पर टिकी नहीं दिखाई देती है. यह बात  राज्यों के चुनावों से समझी जा सकती है. गुजरात में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी जनेऊधारी बन जाते हैं तो कर्नाटक में धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़ लेते हैं. अक्सर राज्यों के चुनाव में कांग्रेस अपनी रणनीति बदल कर कुछ ऐसा करना चाहती है कि वो एकदम से आगे बढ़ सके लेकिन अब तक किये गए परीक्षण नाकाम रहे हैं. इस तरह से मुद्दों को लपकना और छोड़ना कांग्रेस के लिए और अधिक परेशानियां खड़ी करता जा रहा है. इन्हें इस बात को समझना चाहिए कि इस तरह बच्चों जैसी हरक़तें करके राजनीति की जंग नहीं जीती जा सकती है. इसके लिए कुछ बड़ा करने की ज़रूरत है. अब ये बड़ा काम कैसा होगा या कहीं ऐसा न हो कि सभी नेता कद्दू पकड़ के खड़े हो जायें और जनता से कहने लगें  कि लो भाई हमने ये बड़ा कर दिखाया.

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