सोशल मीडिया पर कुछ लाइक पाकर लायक बनने की जुगत में नालायक


जब से सोशल मीडिया ने दुनिया में पाँव पसारे तब से भारत में कोई भी ऐसा विषय नहीं है जिसके एक्सपर्ट न हों. एक विषय पर कई लाख विशेषज्ञ तुरंत अपनी रायशुमारी के लिए तैयार रहते हैं. वैसे तो दुनिया में सोशल मीडिया का इतिहास पुराना हो चुका है. लेकिन इधर भारत में लगभग 4 साल से अधिक समय में इस विशेषज्ञों की काफी लम्बी फेहरिस्त दिखने लगी है. कोई भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा हो, ये बुद्धिजीवी तुरंत ज्ञान पेलने के लिए उस विषय पर,ज्ञान की गंगा बहाने लगते है. जब तक अपने ज्ञान से सराबोर नहीं कर देते तब तक जुटे रहते हैं. लगभग 8 साल पहले मुझ बैकवर्ड ने भी इस सोशल मीडिया के आधुनिक युग में कदम रखा था, सिर्फ इस उत्सुकता के साथ कि देश के भावी युवाओं के लिए सोशल मीडिया इतना रूचि वाला स्थान क्यों है. एक बन्दे ने मेरा फेस बुक खाता खोल दिया था और एक पासवार्ड मुझ बैकवर्ड को बताते हुए यह भी हिदायत दे दी थी कि फेस बुक पर थोड़ा बचकर चलियेगा, बहुत फिसलन और खरतनाक जगह है. इसी दर से कई महीने तक सोशल मीडिया में घुसने की हिम्मत नहीं कर सका था. एक दिन घर में नितांत अकेला था. जब टीवी देखने से मन ऊब गया तो सामने रखे लैपटॉप की तरह हाथ बढ़ गया. पास खींच कर ऑन किया तो एफबी का बना खाता याद आ गया. नौसिखिया होने के कारण पास वर्ड भूल गया था. तो मित्र को घंटी मारकर पासवर्ड पूछा और देखने के लिए बैठ गया फेस बुक में होने वाली हलचल को. कैसे फ्रेंड बनाया जता है इसकी जानकारी के तहत कुछ लोगों को रिक्वेस्ट भेज दी. कुछ समय बाद मित्रता हो गयी. बड़ा आश्चर्य हुआ कि जो लोग मटका भी ठोंक बजा कर खरीदने वालों की संताने हैं. वो बिना देखे कैसे मित्र बना लेते है.कुल मिलाकर पहला अनुभव ठीक ठाक रहा.यंग इण्डिया  की जनरेशन एक-दूसरे को मोहब्बत जताने जुटी हुई थी. या यूँ कह सकते हैं कि युवा पतन की पराकाष्टा दिख रही थी. साल गुजरने के साथ लोगों ने अपनी छपास की भूख मिटाने के लिए अपनी आड़ी तिरछी तस्वीरें भी डालना शुरू कर दी. आज से पांच साल पहले मेरी वाल पूरी तरह से अंग्रेजों के शिकंजे से मुक्त हो चुकी थी. गूगल ट्रांसलेटर ने हिंदी को भारत से ज़्यादा बढ़ावा दिया. ट्रांसलेट हिंदी के साथ रोमन हिंदी अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. समय के आगे बढ़ने साथ ही इस एक दशक में सोशल मीडिया पर बुद्धिजीवियों की रेल-पेल होने लगी. कोई भी मुद्दा हो ये तुरंत उसे वीडियोऑडियो और लिख कर डालने लगे.धीरे-धीरे लैक और शेयर का महत्त्व भी समझ में आने लगा. खैर अब बात करते उन बुद्धिजीवीयों की जो प्राचीन भारत का इतिहास से लेकर आज तक दुनिया में हुई घटनाओं का इतना झूठा-सच्चा सचित्र वर्णन करने लगेंगे कि लोगों को लगने लगता है कि हो न हो ये बन्दा जरूर उस युग में पैदा हुआ था. जो आज पुनर्जन्म लेकर इस युग में आ गया है. ऐसे बन्दे ज्यादातर बे-सर-पैर की बाते ही करते हैं लेकिन इतने आत्मविश्वास के साथ कि सामने वाला भी समझने लगता ई कि ये जरूर दोबारा पैदा हुआ है. इन्हें अगर बकलोल कहा जाए तो ज्यादा उचित है. यही लोग जब कभी कोई राष्ट्रीय मुद्दा सामने आता है तो ये तुरंत मुद्दे के एक्सपर्ट बन जाते हैं. ऐसे ही जाहिल मित्र हैं जो 5 जमात ही पढ़ सके. इसलिए उसी के अनुसार एक फोटो फ्रेमिंग की दुकान कर ली है. ये मित्र महोदय जब नोटबंदी हुई तो  सबको ज्ञान बाँटने लगे कि देखो यार कितना नुकसान हो रहा है. दुकानों में ग्राहक नहीं हैं, आदि-आदि वर्णन करा करते थे. एक दिन लोगों को नोटबंदी पर अपनी एक्सपर्ट राय दे रहे थे तो मैंने उनसे इतना ही कहा कि यार तुमको तो नोटबंदी करने के पहले पीएम मोदी को इस अर्थ व्यवस्था से जुड़े मामले पर तुमसे सलाह लेनी चाहिए थी. कहा पीएम मोदी इन विशेषज्ञों के चक्कर में पड़ गए. फिर सबके सामने पूछ लिया यार तुम पढ़े कितना हो बस फिर उनका कहर मुझ आर टूट पड़ा. खूब धुँआ धार गाली बकने आगे. कि लोगों के सामने मेरी बेईज्जती कर रहे हो. कुछ ऐसे ही ज्ञानधारी आज भी नोटबंदी और जीएसटी पर ज्ञान पेलते रहते हैं, लेकिन वो  Demonetization नहीं बोल सकते हैं.उसी तरह से जीएसटी को गुड्स एंड सर्विस टैक्स(Goods and service tax) नहीं बता सकते हैं लेकिन इस पर ज्ञान की गंगा ऐसे बहाने लगते हैं मानो सामने आरबीआई गवर्नर या वित्तमंत्री साक्षात खड़ा हो. कुछ सड़क छाप ज्ञानी कल 26 जून को सोशल मीडिया पर आपातकाल को कलंक दिवस के रूप में मना रही बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल कर अपने ज्ञान की गंगा बहाते दिख रहे थे कि मानो इमरजेंसी लगाने के लिए इन्हीं से राय ली गयी हो. इनमें ऐसे ज्ञानी  भी थे जो आपातकाल के दस साल बाद पैदा हुए या पैदा हो भी गए होंगे तो उस समय इनकी माताएं इनके गीले-पीले किये पोतड़े(उस युग का डाइपर) बदलती होंगी. इसके बावजूद ये सोशल मीडिया पर ज्ञान की गंगा ऐसे बहा रहे थे, लग रहा था कि ये स्वर्गीय इंदिरा गाँधी के साथ खड़े हों. कुल मिलकर दुनिया में अपनी बात को पहुँचाने के माध्यम फेस बुक को इन लोगों ने गीला-पीला करके के कहीं का नहीं रखा है. जिस सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात रखकर मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी जी से ही कुछ सबक ले लो. जिस बन्दे ने कांग्रेस जैसी सबसे पुरानी पार्टी को इसी के माध्यम से एक झटके में अकेले उखाड़ फैंका. इस बात को सोच कर ही इस अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मंच का इस्तेमाल करना सीख लो. कुछ दोस्तों के लाइक से खुद को लायक नहीं साबित कर सकते हो.क्योंकि ऐसे मूर्ख लोगों को इनके फेस बुक मित्र बाद में पीठ पीछे यहिंखते होंगे कि क्या यार ये तो पूरे तौर पर  बकलोल किस्म का व्यक्ति है. इसे पढ़कर समझ गए तो काबिल बन जाओगे, वरना डाटा और जिन्दगी रिचार्ज करते रह जाओगे.



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