पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के आरएसएस के कार्यक्रम में जाने के निर्णय से क्यों डर रही है कांग्रेस

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के आरएसएस के कार्यक्रम में जाने पर उठे बवाल से ऐसा लग रहा है कि वो कोई भयानक अपराध करने जा रहे हो. बार बार कांग्रेस के खेमे से यही आवाज़ उठ रही है कि प्वार्पूर्व राष्ट्रपति व वरिष्ठ कांग्रेसी प्रणव दा आरएसएस के कार्यक्रम में जाने से परहेज  करना चाहिए. इन कांग्रेसियों का तर्क है कि इनकी हमारी विचार धाराएं नहीं मेल खाती हैं. इस बात में कितना दम है ये तो मंच से प्रणव दा के बोलने के बाद ही समझ में आयेगा. बोलने आज-कल कांग्रेस की तबियत नासाज होने के देश में जो हो रहा है वो उसे गलत लगने लगता है. एनडीए सरकार के बाद जब यूपीए गठबंधन की सरकार ने पहली पारी शुरू कि तो कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने निर्णय लेते हुए प्रणव मुखर्जी जैसे वरिष्ठ और दिग्गज नेता को दरकिनार करते हुए, मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिये लिए उपयुक्त समझा था. हालांकि मनमोहन सिंह के स्थान पर प्रधानमंत्री के दावेदारों की लिस्ट में सबसे ऊपर प्रणव मुखर्जी ही थे. लेकिन उन्हें किस वज़ह से प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया गया ये एक सवाल बन कर ही रह गया. अगर उस समय मंझे हुए कांग्रेसी नेताओं की लिस्ट पर नज़र फेरी जाये तो सबसे उपयुक्त तेज़-तर्रार और ईमानदार छवि के साथ ही वरिष्ठ होने के कारण प्रणव मुखर्जी प्रबल दावेदार थे. अगर ये मान कर चलें कि मनमोहन सिंह कांग्रेस में ऐसे इकलौते नेता और अर्थशास्त्र के जानकार थे. जिन्होंने प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समय देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. शायद इसी आधार पर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया था सही फैसला लेने में चूक हो गयी. आर हाँ में हाँ जैसा की दूसरे दल कहते हैं कि रिमोट से चलने वाला नेता चाहिए था तो वो काफी हद तक सफल रहे थे. अगर कांग्रेस के निरंकुश होने के पिछले शासकों को सामने रख कर देखा जाए तो वर्तमान में इसे दोहराया जाने की बात साफ मालूम पड़ती है. कुछ ऐसी ही उठा-पटक घटनाएँ स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के सत्ताकाल में हुई थी. कई बार टूटते बिखरने से सबक न लेते हुए वर्तमान में भी गांधी परिवार की सदस्य सोनिया गाँधी ने भी कुछ ऐसे निर्णय पुत्र मोह की मज़बूरी में लेने पड़े थे, जिसका परिणाम स्वरुप मंझे हुए नेताओं को साइड लाइन करते हुए, राजनीति नौसिखिये नेताओं को तवज्जो मिलने लगी. सभी इस बात को अच्छे से जानते है कि राजीव गाँधी की लिट्टे उग्रवादियों द्वारा हत्या कर दिये के बाद से स्वर्गीय राजीव गाँधी की पत्नी सोनिया गाँधी ने राजनीति से पूरे तौर पर दूरी बना ली थी जिसके चलते कांग्रेस की विचारधाराओं को फालो करने वाले सीताराम केसरी को संकट के समय कमान सौंपी गयी थी. लेकिन कुछ महीने अचानक से दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पहुँच कर सोनिया गाँधी ने सब कुछ अपने हाथों में ले लिया था. राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गयी थी. ऐसी ही बहुत सी बाते होंगी जोकि कांग्रेस के खेमे से बाहर नहीं निकल पायी हैं. या यूँ कहिये कि किसी भी कांग्रेसी नेता इन्हें बोलने की हिम्मत न जुटा सका हो. आरएसएस के आमंत्रण पर पूर्व राष्ट्रपति का कार्यक्रम में जाने के फैसले से कांग्रेस नाखुश कम डरी हुई ज़्यादा नज़र आ रही है. यह डर कारण से है, ये तो प्रणव दा के आरएसएस कार्यक्रम का मंच साझा करने के बाद ही समझ में आयेगा. मंच से प्रणव मुखर्जी क्या बोलते हैं इसको जानने के लिए देश ही नहीं बाहरी देशों की भी नज़रें और कान इधर ही लगे हुए हैं. वैसे ये तय है कि प्रणव मुखर्जी कोई बड़ा धमाका करने के मूड में नज़र आ रहे हैं. जो कांग्रेस की रही सही साख की धज्जियां उड़ाने वाला भी हो सकता है.

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