आरएसएस के मंच से कांग्रेसियों से बहुत कुछ कह गये प्रणब दा, जरूरत है सन्देश को समझने की
प्रणव दा काआज का भाषण सुनने के बाद उनके लिए दिल में और अधिक सम्मान बढ़ गया है. इस भाषण को अपने लिए सन्देश समझकर कांग्रेसियों को चाहिए कि अपना आचरण सुधारें. एक ही परिवार की चाटुकारिता, चापलूसी और चमचागीरी से परहेज करें. पुराने किये कर्मों को भूलकर, कांग्रेस में जो अच्छा लीडर हो उसे पार्टी की कमान सौंपकर राष्ट्र निर्माण के लिए आगे लायें. सब कांग्रेसी सोच रहे होंगे कि ये सब तो प्रणव दा ने बोला ही नहीं, फिर भी यह बात क्यों लिखी है, तो अब शुरू करता हूँ, असली मुद्दे की बात. सारा देश जानता है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, कांग्रेस के ज़िंदा वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं. जो साठ साल का राजनितिक सफर तय कर चुके हैं. 2004 सत्ता परिवर्तन के तहत एक राजनीतिक एक्सीडेंट के दौरान गाँधी परिवार के अध्यक्ष वाली कांग्रेस ने वरिष्ठता और अनुभवों को दरकिनार कर प्रणव मुखर्जी जी को प्रधानमंत्री न बनाकर डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया था. ऐसा क्यों किया गया था. इसी बात को अपने संबोधन में प्रणव मुखर्जी के हिंदी में बोल दी. उनके संबोधन को सुनने के बाद समझ में आया कि ये देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि प्रणव मुखर्जी जैसे वरिष्ठम और महान नेता के अनुभवों और उनकी सोच का लाभ भारत नहीं उठा सका. यह बात कभी भी देश को नहीं मालूम होती कि प्रणव मुखर्जी अपने अनुभवों से देश को बहुत कुछ दे सकते थे, अगर आरएसएस के कार्यक्रम के भाषण न कहीं होती. जिस तरह से प्रणव दा ने इतिहास के पन्नों से निकालकर भारत के महानायकों का उल्लेख किया उसे सुन कर मन में एक टीस सी उठी कि अगर देश की कमान कांग्रेस के इस अनुभवी नेता को सौंपी गयी होती तो भारत दस साल पहले ही विश्व में अपनी धाक जमा चुका होता. सच ही कहा जाता है कि जब कोई अच्छा इंसान जिसके पास देश को देने के लिए बहुत कुछ था, लेकिन वो सिर्फ अपने कार्यों की खानापूरी करके चला जाए तो ये देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा. वर्तमान के चापलूस कांग्रेसी नेताओं को वरिष्ठ कांग्रेसी नेता व पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आरएसएस के कार्यक्रम में मंच से अपना भाषण हिंदी में देकर यह सन्देश दे दिया है कि राष्ट्रीयता प्रथम की भावना सब में होनी चाहिए. देश को संवारने की भावना सभी में होनी चाहिए. कुछ साल पहले की घटना बताता हूँ. रामलीला मैदान से पीएमओ ऑफिस तक जब अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल लोकपाल बनवाने के लिए नौटंकी कर रहे थे. तब कांग्रेस की तरफ से सर्वदलीय बैठक में लोकपाल पर आम सहमति के लिए बुलाई गयी थी. बैठक में अन्ना के सहयोगियों को भी बुलवाया गया था. जब सर्वदलीय बैठक के में अन्ना के सहयोगियों को बुलाकर लोकपाल पर अपना पक्ष रखने की बात कहीं गयी थी. एक नेशनल चैनल इसका सीधा प्रसारण कर रहा था. बैठक के कुछ ही देर में केजरीवाल और उनके अन्य सहयोगी हड़बड़ी में तेजी से निकलते हैं और चैनल से ये कहते हुए धरना स्थल के लिए चल देते हैं कि हमारा पक्ष जानने की जगह, उल्टे हमें ही डांटने लगे कि क्या आप लोगों ने अव्यवस्था फैला रखी है और भगा दिया गया. कुछ देर में प्रणव मुखर्जी के साथ सभी कांग्रेसी नेता भी बाहर निकल रहे होते हैं तो एक चैनल का पत्रकार प्रणव दा की तरफ लपकता हुआ पहुँचता है और पूछने लगा कि सर बैठक में क्या रहा, सुना है कि अन्ना के साथियों को भगा दिया गया है. यह बात सुनते ही शांत दिखने वाले प्रणव दा उस पत्रकार आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि जिससे ये लोग मिलने गए थे. उनसे जानकारी करो, मैं क्या बताऊँ कि अन्दर बैठक में क्या हुआ, क्या नहीं हुआ और कार में बैठ कर चले जाते हैं. कुछ ऐसे साफगोई बात करने वाले नेता थे प्रणव मुखर्जी. पूर्व राष्ट्रपति का प्रणव मुखर्जी आर एस एस कार्यक्रम में जाना और इतिहास और राष्ट्रीयता की बात करना बहुत कुछ कह रहा है. अगर कांग्रेस इस संबोधन में छिपे सन्देश को समझ गयी है तो पीपा-पोती करने के स्थान सबक लें और देश की तरक्की में अपनी भूमिका तय करें. इसी में देश और लोकतंत्र की भलाई है.




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