पेट भरों का कहना है कि ग़रीबों की पॉलिथिन क्यों बंद कर दी

कई वर्षों के बाद समझ में आया कि विरोध दो प्रकार के होते हैं. नंबर एक विरोध जो खाली पेट वाले करते हैं. दूसरा प्रकार में पेट भरे लोग आते हैं. चलते हैं पहले प्रकार का विरोध प्रदर्शन को समझते हैं. जो खाली पेट होता है, जिसे धरना-प्रदर्शन कहते हैं. इस विरोध में दुखी दिल से निकलने वाले नारे और उसकी मांग होती है. ऐसे विरोध कभी-कभी किसी व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने की नियत से यूनियन के नेता कुछ खा-पीकर, खाली पेट वालों को इकठ्ठा करके केंद्र और राज्यों की आती-जाती सरकारों के खिलाफ करते हैं. ऐसे धरना-प्रदर्शन से उन नेताओं का जो भी मकसद होता है वो हल हो जाने पर ये खाली पेट वाले व्यक्तियों को आश्वासनों का लॉलीपॉप थमाकर उनकी घर वापसी कर देते हैं. इसे संगठित रूप से ठगी कह सकते हैं. बहुत ही सच्चा विरोध प्रदर्शन अब देखने को मिलता है. आजादी के पहले देश में अंग्रेजों के खिलाफ जो एकजुट होकर प्रदर्शन या विरोध होता था वो सच्चा हुआ करता था, इसमें कोई भी हिन्दू मुसलमान नहीं होता था. आज-कल जो प्रदर्शन या धरना होता है वो पूरे तौर पर वीआईपी टाइप का होता है जिसे दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी, कांग्रेस आदि दल अक्सर करने के लिए अमादा हो जाते हैं. इन्हें खाना हज़म करो प्रदर्शन कहना अधिक उचित है, क्योंकि इसमें खाली पेट जनता का अभाव होता है. ऐसे धरना-प्रदर्शनों में जो इसे प्रायोजित करता है वो तो अपना मकसद हल कर लेता है लेकिन खाली पेट वाले, खाली पेट ही रह जाते हैं. 
दूसरे प्रकार का विरोध प्रदर्शन भरे पेट वालों का होता है. जो खाना हज़म करने के लिए करते हैं. भरा पेट होने के कारण ऐसे लोग, अक्सर बेसिर पैर की बातों को लिखकर करते हैं. ऐसे पेट भरे लोग आप को सोशल मीडिया पर दिखाई दे सकते हैं. ये क्या कहना चाहते हैं इन्हें खुद नहीं मालूम होता है. इनका काम बस पेट का खाना हज़म करना होता है. यूपी की योगी सरकार ने पॉलिथिन बंद कर दी है. इसके तहत ऐसे बैग में दुकानदार सामान देता है तो उसे कैद की सजा और जुर्माना भरना पड़ पड़ेगा. अब इन पॉलिथिन बैग को लक्सर ही खाना हज़म क्स्रने वाली प्रजाति ने इमोशनल बातें लिखकर फेस बुक पर लीपना-पोतना शुरू कर दिया है. एक सज्जन खाना हज़म करने के लिए लिख रहे हैं कि सडक के किनारे दूकान लगाने वालों की ही पॉलिथिन बंद की गयी है या जो बड़ी-बड़ी हैं जो खाने पिने अ सामान इन बैग में देती हैं उन्हें भी बंद किया गया है. अब इन पेट से भरे और दिमाग से कम लोगों को ये नहीं मालूम कि शासनादेश में साफ लिखा है कि 50 माइक्रान से पतली पन्नी पर रोक लगा दी गयी है. ऐसा पहले भी कोर्ट ने आदेश दिया था कि जो पन्नी नष्ट नहीं होती हैं  उसमें खाने पीने की वस्तुओं मार्केट में नहीं बेचा जाए. इसके तहत ज़्यादातर कंपनियों ने अपने उत्पादों को निर्धारित स्टैण्डर्ड की ही पन्नी में पैक करना शुरू कर दिया था. यूपी में कैरीबैग आदि पर रोक लगायी गयी है, ऐसे खाना हज़म करने वाले विरोधियों को ये बात भी मालूम नहीं है. लेकिन पेट भरे लोग खाना हज़म करने के लिए ग़रीबों की सुध लेने में जुट गए हैं. अब ऐसे लोगों को क्या समझाया जाए कि कैरीबैग बनाने वाले कंपनीधारी ज्यादातर बिजली चोरी करके अपना उत्पादन करते हैं और न नष्ट हो पाने वाले मानक के विपरीत कैरीबैग बाज़ारों में पहुंचा देते हैं. इसके फैक्टरी मालिक सड़क किनारे बैठने वाले गरीब नहीं होते हैं इसे सामान बेचने के लिए इस्तेमाल करने वाले गरीब होते हैं जिन्हें अब इस बात से छुटकारा मिल जायेगा कि पन्नी खरीदने का पैसा नहीं खर्च करना पड़ेगा. कोई भी सामान खरीदने वाला घर से कपडे का बैग लेकर खरीदारी करेगा. ऐसे कैरी बैग से हमेशा ही नाले-नालियों चोक हो जाते हैं जिसके कारण नाले-नालियां उफनकर सड़कों में बहने लगते हैं और सारी गन्दगी सड़कों पर फ़ैल जाती है. या फिर चोक हो चुके गन्दगी से बजबजाते नाले-नालियां कई तरह की बीमारियों को दावत दे देते रहते हैं. अपने घर का कचरा पोलीथिन बैग भर कर फैंक देने से पशु इन्हें पन्नी समेत खा जाते हैं जिससे बीमार हो जाते हैं को भी छुटकारा मिल जाएगा. खाना हज़म करने के लिए लिखने वालों को चाहिए कि एक बार नालों के किनारे रहने वालों की भी सुध लें ताकि कुछ तथ्यपरक बातों को लिख कर सरकार की आम लोगों की लिए की गई भलाई की बातों को आगे पहुंचाएं. विरोध के लिए विरोध करके अपने-आप को मूर्ख साबित न करें. इसी में सब की भलाई है. 




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