वोट की राजनीति के तहत तथाकथित झंडाबरदारों ने लगाया ब्राह्मणों पर समाज तोड़ने का आरोप
वोट के लिए राजनीति करने वालों ने ही ब्राह्मण जाति को विकृत रूप में सभी वर्गों में जहर घोलकर उन्हें तोड़ने का काम किया है. ब्राह्मणों ने समाज को कभी नहीं तोड़ा. प्राचीन परम्पराओं में सभी जातियों की भागीदारी के साथ जोड़ने का काम किया है। सभी जाति के लोगों को जोड़ते हुए समाज की रीति-रिवाजों को बढ़ावा दिया. *ब्राह्मणों ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े दलित को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि दलित स्त्री द्वारा बनाये गये चूल्हे पर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगें। इस तरह सबसे पहले दलित को जोडा गया. *धोबन के द्वारा दिये गये जल से ही कन्या सुहागन रहेगी, इस तरह धोबी को जोड़ा गया. * कुम्हार द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओं के पूजन होगें, यह कहते हुये कुम्हार को जोड़ा.* मुसहर जाति जो वृक्ष के पत्तों से पत्तल/दोनीया बनाते है, उन्हें यह कहते हुये जोड़ा कि इन्हीं के बनाए गये पत्तल/दोनीयों से देवताओं का पूजन सम्पन्न होगे. * कहार जो जल भरते थे, उन्हें यह कहते हुए जोड़ा कि इन्हीं के द्वारा दिये गये जल से देवताओं के पूजन होगें. * विश्वकर्मा जो लकड़ी के कार्य करते थे, उन्हें यह कहते हुये जोड़ा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन/चौकी पर ही बैठकर वर-वधू देवताओं का पूजन करेंगे. * फिर उन हिन्दुओं को जो किन्हीं कारणों से मुसलमान बन गये थे, उन्हें जोड़ते हुये कहा गया कि इनके द्वारा सिले हुये वस्त्रों (जामे-जोड़े) को ही पहनकर विवाह सम्पन्न होगें. फिर उस हिन्दु से मुस्लिम बनीं औरतों को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा पहनाई गयी चूडियां ही वधु को सौभाग्यवती बनायेगी. * धारीकार जो डाल और मौरी को दूल्हे के सर पर रखकर द्वारचार कराया जाता है, को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा बनाये गये उपहारों के बिना देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल सकता. * डोम जो गंदगी साफ और मैला ढोने का काम किया करते थे, उन्हें यह कहकर जोड़ा गया कि मरणोंपरांत इनके द्वारा ही प्रथम मुखाग्नि दी जायेगा. इस तरह से समाज के सभी वर्ग जब आ जाते हैं, तब घर की महिलायें मंगल गीत का गायन करते हुये, उनका स्वागत करती है और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर ससम्मान विदा करती हैं. विवाह संस्कार इस तरह के रीति रिवाजों के द्वारा सभी जातियों को जोड़ने वाले ब्राह्मणों का समाज को तोड़ने का दोष कहाँ से हुआ. बस ब्राह्मणों का दोष सिर्फ इतना है कि इन्होंने अपने ऊपर लगाये गये निराधार आरोपों का कभी खंडन नहीं किया, जो ब्राह्मणों के अपमान का कारण बन गया। इस तरह जब समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के बाद ब्राह्मण नाई से पूछता है कि क्या सभी वर्गों के लोग उपस्थित हो गए हैं. नाई के हाँ कहने के बाद ही ब्राह्मण मंगल-पाठ प्रारम्भ किया करते हैं। ब्राह्मणों द्वारा जोड़ने की इस क्रिया को छोड़ने पर मज़बूर किया, कुछ ब्राह्मण विरोधी लोगों ने और दोष ब्राह्मणों पर लगा दिया। ब्राह्मणों को यदि अपना खोया हुआ वह सम्मान प्राप्त करना है तो इन सड़े-गले वक्तव्यों का कड़ा विरोध कर रोक लगानी होगी। देश में फैले हुये समाज विरोधी, साधुओं और ब्राह्मण विरोधी ताकतों का विरोध करना होगा, जो अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिये वेद और ब्राह्मणों की निन्दा करते हुये पूर्ण भौतिकता का आनन्द ले रहे हैं। याद रखो ब्राह्मण वो पण्डे नहीं जो मंदिर को दुकान बनाते हैं. ये ज्ञान के भण्डार हैं. जिनसे इस श्रृष्टि की रचना हुई। इस लेख का ब्राह्मण होने या मनुवादी का सरोकार नही है। हमारा उद्देश्य अपनी पुरातन संस्कृति के अच्छे स्वरूप और सही अवधारणा के प्रस्तुतिकरण भर है।





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