पट्रोल, डीजल और गैस पर भारत बंद, ग़रीबों के लिए था या महँगी गाड़ियां रखने वाले 'करोड़पति ग़रीबों' के लिए

1947 लगातार गरीब देशवासियों की आवाज कांग्रेस ने सभी छुटभैय्ये दलों के साथ मिलकर पट्रोल,डीजल,गैस(गैस को स्वयं जोड़ा है,इसको महँगा बताया तो ग़रीबों को मिलने वाली सब्सिडी का जमकर उपभोग करने वाले मुफ्तखोरों के डंडा होने का डर है कि कहीं मोदी सरकार जांच करके इन मुफ्तखोरों को सब्सिडी वाले गैस सिलेंडरों से वंचित न कर दे) के दाम बढ़ने. अन्य रोज़-मर्रा की वस्तुओं में कोई ख़ास बढ़ोतरी न होने के बावज़ूद विरोध में भारत बंद का आयोजन किया गया. इस प्रदर्शन को नाम दिया गया कि ये ग़रीबों को महंगाई की मार से बचाने के लिया है.एक लेख में लिख चुका हूँ कि सच्चाई का आइना बन चुका है सोशल मीडिया(फोटो शॉप आदि को छोड़ दे) इस सोशल मीडिया के पत्रकार आम लोग होते हैं. जो बीके हुए नहीं होते हैं, इन लोगों को अनोखी फोटो और वीडियो बनाने का जूनून होता है. देश में हर जगह फैले ऐसे पत्रकार सच्ची और समर्पित भाव की पत्रकरिता करते हैं. ऐसे लोगों ने ही बड़े-बड़े बैनरों के न्यूज़ पेपर्स और न्यूज़ चैनल्स के मालिकों को अपनी दुकाने सोशल मीडिया पर लाने के लिए मज़बूर कर दिया है. सोशल मीडिया को अपार सफलता की ऊँचाइयों तक ले जाने का श्रेय इन्हीं अवैतनिक सच्चे पत्रकारों को है. इन पत्रकारों के हाथों में अत्याधुनिक मोबाइलन थमाने का पूरा क्रेडिट चाइना को दिया जाये तो गलत नहीं होगा. बात मुद्दे की करते हैं. कांग्रेस समेत सभी मोदी सरकार विरोधी दलों ने कुछ न्यूज़ चैनलों और ऑनलाइन समाचार-पत्रों के माध्यम से पट्रोल,डीजल महँगा होने से ग़रीबों को महंगाई की मार से बचाने की कहानी बताकर भारत बंद के नाम पर जमकर चार पहिया वाहनों में तोड़-फोड़ की तथा कुछ जगह इन्हें आग के हवाले कर दिया. ऐसा कुछ राज्यों में कर पाने में ही ये सरकार विरोधी सफल हो सके. रात में फेस बुक और टीवी पर न्यूज़ चैनल देखने शुरू किये तो दोनों ही माध्यमों के बीच अच्छी और सच्ची स्पॉट रिपोर्टिंग नेखने को मिली. इस होड़ में सोशल मीडिया का अवैतनिक पत्रकार जीता हुआ लगा. न्यूज़ चैनल बंद का प्रोपेगंडा कर रहा था कि देश भर में महंगाई के लिए प्रदर्शन हो रहा है. इस बात को अपने हिसाब से न्यूज़ चैनल दिखा रहे थे तो वहीं सोशल मीडिया के ये अवैतनिक पत्रकार तेजतर्रार पत्रकार ग़रीबों का मखौल उड़ाने वाले प्रदर्शन की कवरेज से सोशल मीडिया में विचरण करने वालों को सच्चाई दिखा रहा था. गरीब बुजुर्ग की खाने-पीने की दूकान का सामान फैंकने का वीडियो देखने को मिला. इसी के साथ कारों और माल ढोने वाले चार पहिया वाहनों बसों दुकानों आदि में तोड़-फोड़ की दर्ज़नों तस्वीरें और वीडियो देखने को मिले. सवाल ये है कि भारत बंद में उग्र प्रदर्शन कर कारों, बसों खाद्य वस्तुयें ले जाने वाले वाहनों और गरीब होटल वालों के खाने के सामनों को फैंकने का क्या औचित्य था. जब ग़रीबों के लिए ये प्रदर्शन था तो इस तरह की तोड़-फोड़ से सरकार विरोधी दल क्या सन्देश देना चाहते थे. कोई मिडिल क्लास व्यक्ति अपनी गाढ़ी कमाई से कार खरीदता है, उसकी कार को बुरी तरह से क्षति ग्रस्त इसलिए कर दिया जाता है कि वो बंद में शामिल होकर घर में बैठता. किसी गरीब बुजुर्ग के खाने पीने के होटल का सामान फैंक देना सिर्फ इसलिए कि वो भारत बंद में अपना होटल क्यों नहीं बंद किये हुए हैं. सब्जी का हाफ डाला के टमाटर सड़कों फैंक कर प्रदर्शनकारी क्या जतलाना चाहते थे. अगर सच में ईमानदारी से गरीब जनता को महंगाई की मार से बचाने के लिए ये बंद था तो ग़रीबों के साथ इस तरह की हरक़तें करके के क्या महंगाई का विरोध हो गया. पट्रोल डीजल और गैस से सभी वर्ग के लोगों का सम्बन्ध होता है. 1- पट्रोल से सबसे ज़्यादा लेना-देना लखपति और करोड़पतियों का होता है. कई लाख से लेकर कई करोड़ की कई एक गाड़ियां रखने वाले लोग सबसे ज़्यादा पट्रोल और डीजल का इस्तेमाल करते हैं. अगर औसत निकाला जाए तो जितना पट्रोल का इस्तेमाल मध्यम और निम्न वर्ग एक महीने में करता है करता है उससे कई गुना ज्यादा पट्रोल का इस्तेमाल महँगी गाड़ी रखने वाले एक दिन में करते होंगे. ऐसा ही डीजल पर भी लागू होता है. अब सभी कर बनाने वाली कम्पनियाँ डीजल के चारपहिया वाहनों को सडकों पर उतार चुकी है. ये भी माल धोने वाले ट्रकों से अधिक नहीं तो इनके बराबर महँगी गाडी रखने वाले करते होंगे. अब गैस की बात करें तो कई करोड़ की संख्या में मुफ्तखोरों ने भी गैस पर सब्सिडी ले रखी हैं. वो भी गरीब तबके की आड़ में इसका भरपूर उपभोग करते हैं. गरीब को गैस सब्सिडी मिलती है तो उसके ऊपर महंगी गैस की मार नहीं पड़ती है. जो नॉन सब्सिडी गैस खरीदते हैं, उनमें ज्यादटर लोग महँगी गैस लेने में सक्षम हैं. पांच लोगों के परिवार में एक गैस सिलेंडर एक महीने चल जाता है. रही अमीरों की बात तो वो एक सिलेंडर कई महीने चलाते हैं. इसके पीछे का कर्ण ये होता है कि ये आये दिन घर से बाहर ही खाना खाते हैं सुबह की चाय या नाश्ता ही इनके चूल्हे पर बनता होगा. क्या भारत बंद करने वाले लोग ये बताने का कष्ट करेंगे कि महंगे हुए पट्रोल,डीजल और गैस के विरोध बंद ग़रीबों के लिए था या उन अमीरों के लिए था, जो कई लाख से कई करोड़ रूपये की आधा दर्जन कारों रखते हैं, उनके लिए था. विरोधी दलों को ये हमेशा याद रखना चाहिए कि ग़रीबों की बद्दुआ में बहुत असर होता है. कहीं ऐसा न हो इनकी हाय लग गयी तो पार्टी कार्यालय न बंद हो जाए. इस तरह की बरीबों की आड़ में सत्ता पाने की लालसा में कहीं ऐसा न हो कि पार्टी की लुटिया पूरी तरह से डूब जाए. ये जो पब्लिक है सब जानती है.





Comments